जहां बसता हर कण-कण में शिव का वास
बहती है गंगा की निर्मल धार, वो बनारस है…!
जिसकी हवाओं में बहती शिवा के नाम की राख
घाटों पर सुबह-सुबह सिर्फ शिव के नाम की गूंज, वो बनारस है...!
जिसकी महिमा कोई समझ ना पाया क्योंकि महिमा है अपरंपार
फिजाओं में रंगता ऐसी कि हर धर्म मोहब्बत कर बैठे, वो बनारस है…!
हर घाटों पर शामों को लगे शिव के भक्तों का मेला
अल्फाजों से छूकर निकलें वो आरती की गूंज, वो बनारस है…!
जिसकी गंगा की शफ्फाक लहरों में बहता इश्क़ है
मणिकर्णिका घाट पर मिलती मुक्ति है, वो बनारस है…!
जहां हर जाति मिल जाती है मोहब्बत में वो घाट अस्सी है
हर घाट की अपनी –अपनी एक कहानी है, वो बनारस है…!
किरण मौर्या, नोएडा
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