पंडित रविशंकर के लिए
-सविता पांडेय
हजारों-हजार वर्षों में एक बार,
बहुत संभव है....
संगीतकार का साज बन जाना!
बंदिशों, टुकड़ियों, तालों, छंदों का
फड़कती नब्जों और हृदय धमनियों का
राग बन जाना!
बहुत संभव है आदमी के मेरुदंड का
सितार के तारों और दंड की तरह
तन जाना!
ऐसा हमने पंडित रविशंकर को देखा और जाना
हमने देखा कि...
कैसे समय के चौखटे फ्रेम में कैद
अजीम सितारवादक की आँखें, मुस्कुराहट, चेहरे की आभा और भाव भंगिमाएँ
सितार के तार बन जाती हैं!
हमने देखा कि
सितार बजाते-बजाते कैसे कोई संगीतकार साज बन जाता है।
और यह भी कि...
कैसे सितार की तरह शरीर से फूट सकते हैं राग!
देहराग! विश्वराग !
-savitapan@gmail.com
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